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कविता

दंगे के बाद

अभिज्ञात


इस बिला गए आदमी की
हो रही है शिनाख्त

शिनाख्त दंगे के बाद

दंगे के बाद
अपनी पूरी खुराक पाता है गिद्ध
उससे अधिक वह आँख
जो आदमी को बाँट देती है
गिद्ध से पहले ही टुकड़ों में

टुकड़े उनके नुकीले संतोष में शामिल हो जाते हैं

दंगे के बाद मोहल्ले
गर्भपात के बाद औरत की उदासी होते हैं
ऐसा नहीं कहूँगा
यह कविता के खतरनाक कसीदे के
मुलायम आस्वाद का मामला नहीं है

दंगा शब्दों के रद्द हो जाने की
एक प्रक्रिया है
जो शब्दों की गलतबयानी का प्रतिफलन है
दंगा एक निशानेबाज शिकारी का
मचान से गिर जाने का दुख है

दंगे के बाद
बचा हुआ आदमी
अपने भीतर मरता है

कसाई देखता है हिकारत से अपने हथियार को
गौर से बकरियों को
सोचता है कितना फर्क है
आदमी और बकरी में

दंगे के बाद आदमी ध्यान से पढ़ता है
नाम और सोचता है गंभीरता से नामों के बारे में
डर जाता है सोचकर कि
जानते हैं लोगबाग उसका नाम।


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